अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में एक ख़ास रिपोर्ट का ज़िक्र किया है, जिसमें कहा गया कि बाबरी मस्जिद के नीचे कोई हिंदू मंदिर नहीं था.
‘रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन’ को चार स्वतंत्र इतिहासकारों की टीम ने तैयार किया है. इस रिपोर्ट को सरकार को सौंपा गया था.
प्रोफेसर सूरज भान, अतहर अली, आर एस शर्मा और डी एन झा ने ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक सबूतों की जांच-पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट में उस मान्यता को ख़ारिज किया, जिसमें कहा जाता है कि बाबरी मस्ज़िद के नीचे एक हिंदू मंदिर था.
रिपोर्ट के लेखक और जाने-माने इतिहासकार प्रोफेसर डीएन झा ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है.
उन्होंने कहा कि इसमें हिंदुओं की आस्था को अहमियत दी गई है और फ़ैसले का आधार दोषपूर्ण पुरातत्व विज्ञान को बनाया गया है. प्रोफेसर डी एन झा ने इसे बहुत ही निराशाजनक कहा.

जब उनसे पूछा गया कि उनकी फ़ैक्ट फ़ाइंडिग रिपोर्ट – ‘रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन’ में क्या निष्कर्ष निकला था?
डी एन झा बताते हैं कि ये रिपोर्ट 1992 में मस्ज़िद के विध्वंस से पहले सरकार को सौंपी गई थी. उनके मुताबिक इस रिपोर्ट के लिए उस वक़्त मौजूद हर सबूत की गहन जांच-पड़ताल की गई. जिसके बाद निष्कर्ष निकला कि मस्ज़िद के नीचे कोई राम मंदिर नहीं था.
तो एएसआई को और क्या कुछ करना चाहिए था? इसपर प्रोफेसर डी एन झा कहते हैं कि एएसआई ने हमेशा अयोध्या विवाद में संदेहास्पद भूमिका निभाई है.

वो कहते हैं, “विध्वंस से पहले जब हम अयोध्या से जुड़ी प्राचीन चीज़ों की जांच के लिए पुराना क़िला गए, तो एएसआई ने हमें ट्रेंच IV की साइट नोट बुक नहीं दी, जिसमें काफ़ी अहम सबूत थे. साफ़ तौर पर ये सबूतों को दबाने का मामला था. और विध्वंस के बाद एएसआई ने जो खुदाई की, वो पहले से बनी एक मान्यता के साथ की. इसने उन सबूतों को दबा दिया, जो मंदिर की थ्योरी को काटते थे. एएसआई से उम्मीद की जाती है कि किसी जगह की खुदाई के वक्त वो साइंटिफ़िक नॉर्म्स को देखे.”
ऐसे में भारत के लिए इस फ़ैसले का क्या मतलब होगा?
इसपर प्रोफेसर डीएन झा कहते हैं, “ये फ़ैसला बहुसंख्यकवाद की तरफ़ झुका हुआ है. ये हमारे देश के लिए अच्छा नहीं है.”
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